Monday, June 10, 2019

फ्रांस में डी-डे की 75वीं वर्षगांठ, तस्वीरों में देखिए.

फ़्रांस के नॉरमैंडी शहर में दूसरे विश्वयुद्ध के सबसे बड़े सैन्य अभियान 'डी-डे' की 75वीं वर्षगांठ मनाई गई, जहां प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी मौजूद रहे.
टेरीज़ा मे और फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने नॉरमैंडी की लड़ाई में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों को सम्मानित करने के लिए स्मारक के उद्घाटन समारोह में भाग लिया.
गुरुवार को आगे और क्या कुछ हुआ, उसकी झलकियां तस्वीरों में देखें.
मालदीव के आलीशान प्रेसीडेंट्स हाउस के बैंक्वेट हॉल में शनिवार को कोई तीस लोग रहे होंगे.
शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे और इससे पहले बग़ल वाले प्राइवेट हॉल में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबी बातचीत चली थी.
शुरुआत राष्ट्रपति सोलिह ने की और जब मोदी की बारी आई तो उन्होंने पहले सोने के 'निशान इज़्ज़ुदीन' मेडल तो गले में ठीक करते हुए कहा, "हमारे देशों ने कुछ दिन पहले ही ईद का त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया है. मेरी शुभकामनाएं हैं कि इस पर्व का प्रकाश हमारे नागरिकों के जीवन को हमेशा आलोकित करता रहे."
मोदी के इस वाक्य पर उनके बाईं ओर खड़े भारतीय दल के लोग मुस्कुराए.
सबसे ज़्यादा मुस्कराहट दिखी कैबिनेट मंत्री का दर्जा रखने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के चेहरे पर.
मोदी ने अपने सम्बोधन के शुरुआत में ही पिछले कुछ वर्षों की भारतीय झुँझलाहट को उजागर कर दिया. उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति सोलिह, आपके पद ग्रहण करने के बाद से द्विपक्षीय सहयोग की गति और दिशा में मौलिक बदलाव आया है."
दरअसल, ये एक सीधा संदेश था मालदीव के लिए और चीन के लिए जिसका इंतज़ार भारतीय विदेश मंत्रालय एक लंबे समय से कर रहा था.
हक़ीक़त यही है कि 2013 से 2018 के दौरान मालदीव की अब्दुल्ला यामीन सरकार ने भारत को नज़रंदाज़ कर चीन से खुले आम दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया था और अरबों डॉलर के व्यावसायिक समझौते भी किए थे.
दर्जनों चीनी कम्पनियों ने इस दौरान मालदीव में निवेश शुरू कर दिया जिसमें होटल, रिसॉर्ट्स, बंदरगाह और राजधानी माले को हवाई अड्डे वाले द्वीप से जोड़ने वाले एक बेहद ज़रूरी फ़्लाईओवर का निर्माण भी शामिल था.
भारत को यह रास नहीं आया और सितम्बर, 2018 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसका उद्घाटन किया तो भारतीय दूतावास ने समारोह में हिस्सा नहीं लिया था.
शायद यही वजह थी कि बीते शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी मालदीव के हवाई अड्डे वाले द्वीप पर लैंड करने के बाद समुद्र पर बने इस पुल के बजाय एक स्पीडबोट पर सवार होकर समुद्री रास्ते से माले पहुँचे.
माले में तीस साल से रह रहीं भारतीय मूल की व्यवसायी कंचन जशनानी से मामले पर बात हुई तो उन्होंने कहा, "पिछले सालों में यहाँ बदलाव तो बहुत आया है. कुछ चीज़ें अच्छी हुईं तो कुछ वैसी नहीं कहीं जा सकतीं. लेकिन इस यात्रा के बाद आगे अच्छा होना चाहिए ऐसी अभी उम्मीद तो है."
लेकिन वजह अनेक हैं जिन पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है.
पहली बात ये कि दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के मालदीव को चुनने की असल वजह क्या है.
मोदी ने अपने दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में पिछली बार की तरह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के नहीं बल्कि बिम्सटेक देशों के समूह के नेताओं को बुलाया और मालदीव इसमें नहीं था.
दूसरी बात ये कि पिछले कुछ सालों में मालदीव और श्रीलंका भारतीय विदेश नीति के लिए पाकिस्तान के बाद शायद सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं.
दोनों देशों में एक लंबे समय तक प्रतिद्वंदी चीन की हिमायती सरकारें सत्ता में थीं और भारत को ये बात खटक रही थी.
गोवा विश्विद्यालय में दक्षिण एशिया विभाग के प्रोफ़ेसर राहुल त्रिपाठी के मुताबिक़, "कुछ आलोचक इस बात को भी कहते रहे हैं कि भारत इंतज़ार कर रहा था, किसी भी मौक़े का, इन दोनों देशों में दोबारा पैर जमाने का. श्रीलंका में मौक़ा थोड़ा पहले मिला और मालदीव में थोड़ा बाद में. लेकिन गोल एक था, चीन को पछाड़ना."

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