Tuesday, June 18, 2019

प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में शपथ के दौरान क्या बोला कि हुआ विवाद- प्रेस रिव्यू

संसद में सत्र के पहले दिन नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाई गई और जब प्रज्ञा सिंह ठाकुर शपथ लेने पहुंचीं तो उन्होंने अपने नाम के पीछे स्वामी पूर्ण चेतनानंद अवधेशानंद गिरी जोड़कर शपथ लेना शुरू किया. इस पर विपक्ष के सांसदों ने नियम-क़ायदों का हवाला देते हुए आपत्ति जताई.
साध्वी प्रज्ञा ने चुनाव में उम्मीदवारी के वक़्त हलफ़नामे में अपने पिता का नाम सीपी सिंह दर्ज कराया है लेकिन उन्होंने शपथ लेते वक़्त पिता के नाम की जगह अवधेशानंद गिरी का नाम बोला जो कि उनके आध्यात्मिक गुरु हैं यानी रिकॉर्ड में यह नाम दर्ज नहीं है.
नियमों के मुताबिक़ नामांकन पत्र दाख़िल करते वक़्त हलफ़नामे में जो नाम दर्ज कराया जाता है, सांसद में उसी नाम से शपथ ले सकते हैं. सांसद अपने पिता का नाम अपने नाम के साथ जोड़ सकते हैं लेकिन हलफ़नामे वाला नाम ही होना चाहिए.
टाइम्स ऑफ इंडिया
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़ केरल की एक ऐसी महिला का कैंसर का इलाज कर दिया गया जिन्हें कैंसर था ही नहीं.
38 साल की रजनी को फ़रवरी में पता चला कि उनके दाएं स्तन में गांठ है. बायोपसी के लिए सैंपल दो जगह भेजे गए. एक प्राइवेट लैब में और एक सरकारी मेडिकल कॉलेज की पैथोलॉजी लैब में.
प्राइवेट लैब ने एक हफ़्ते के अंदर बताया कि उन्हें स्तन कैंसर है. मेडिकल कॉलेज के कैंसर विभाग में उनका इलाज शुरू हो गया और उन्हें कीमोथेरेपी दी गई.
लेकिन कुछ दिन बाद जब सरकारी मेडिकल कॉलेज की लैब का नतीजा आया तो उसमें कैंसर नहीं मिला. इलाज की वजह से उनके बाल भी झड़ चुके हैं और फिलहाल दवाइयों के साइड-इफैक्ट से उबरने की कोशिश कर रही हैं.
केरल की स्वास्थ्य मंत्री ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं और रजनी को मदद देने का आश्वासन दिया है.
की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मुंबई पुलिस ने टीवी अभिनेता करन ओबराय पर रेप का आरोप लगाने वाली 34 साल की एक महिला को गिरफ़्तार किया है.
महिला को आपराधिक साज़िश और एफ़आईआर में झूठी जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है.
करन ओबरॉय को पाँच मई को गिरफ्तार कर लिया गया था और एक महीने तक जेल में रहे. एक महीने बाद उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट ने ज़मानत दे दी क्योंकि महिला और करन की वॉट्सएप चैट से कोर्ट को एफ़आईआर को लेकर शक़ हुआ.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शैलेश पसलवार ने अख़बार को बताया कि पुलिस ने महिला को सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया है और साथ ही उनके वकील और चार दूसरे शामिल लोगों ने जुर्म भी क़बूला है.
नवभारत टाइम्स
अमर उजाला में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में एक दलित किसान की हाथ-पैर काटने के बाद जलाकर हत्या कर दी गई. पुलिस ने अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज किया है.
ससी-एसटी आयोग ने भी इस घटना का संज्ञान लिया है. इस हत्या के विरोध में स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन भी किया है. हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों से हत्या और बलात्कार के मामलों की ख़बरें आ रही हैं.
में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत 2027 तक आबादी के मामले में चीन को पछाड़ देगा. यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में सोमवार को दी गई है.
भारत की जनसंख्या में 2050 तक 27.3 करोड़ की वृद्धि हो सकती है. इसके साथ ही भारत शताब्दी के अंत तक दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बना रह सकता है.
इस रिपोर्ट में भारत के साथ ही दुनिया की आबादी से जुड़े कुछ और महत्वपूर्ण आंकड़ों का भी रिपोर्ट में ज़िक्र किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग की प्रकाशित 'द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स 2019 : हाईलाइट्स' शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 30 सालों में दुनिया की आबादी दो अरब तक बढ़ कर मौजूदा 7.7 अरब से 2050 तक 9.7 अरब हो सकती है.

Monday, June 10, 2019

फ्रांस में डी-डे की 75वीं वर्षगांठ, तस्वीरों में देखिए.

फ़्रांस के नॉरमैंडी शहर में दूसरे विश्वयुद्ध के सबसे बड़े सैन्य अभियान 'डी-डे' की 75वीं वर्षगांठ मनाई गई, जहां प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी मौजूद रहे.
टेरीज़ा मे और फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने नॉरमैंडी की लड़ाई में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों को सम्मानित करने के लिए स्मारक के उद्घाटन समारोह में भाग लिया.
गुरुवार को आगे और क्या कुछ हुआ, उसकी झलकियां तस्वीरों में देखें.
मालदीव के आलीशान प्रेसीडेंट्स हाउस के बैंक्वेट हॉल में शनिवार को कोई तीस लोग रहे होंगे.
शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे और इससे पहले बग़ल वाले प्राइवेट हॉल में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंबी बातचीत चली थी.
शुरुआत राष्ट्रपति सोलिह ने की और जब मोदी की बारी आई तो उन्होंने पहले सोने के 'निशान इज़्ज़ुदीन' मेडल तो गले में ठीक करते हुए कहा, "हमारे देशों ने कुछ दिन पहले ही ईद का त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया है. मेरी शुभकामनाएं हैं कि इस पर्व का प्रकाश हमारे नागरिकों के जीवन को हमेशा आलोकित करता रहे."
मोदी के इस वाक्य पर उनके बाईं ओर खड़े भारतीय दल के लोग मुस्कुराए.
सबसे ज़्यादा मुस्कराहट दिखी कैबिनेट मंत्री का दर्जा रखने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के चेहरे पर.
मोदी ने अपने सम्बोधन के शुरुआत में ही पिछले कुछ वर्षों की भारतीय झुँझलाहट को उजागर कर दिया. उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति सोलिह, आपके पद ग्रहण करने के बाद से द्विपक्षीय सहयोग की गति और दिशा में मौलिक बदलाव आया है."
दरअसल, ये एक सीधा संदेश था मालदीव के लिए और चीन के लिए जिसका इंतज़ार भारतीय विदेश मंत्रालय एक लंबे समय से कर रहा था.
हक़ीक़त यही है कि 2013 से 2018 के दौरान मालदीव की अब्दुल्ला यामीन सरकार ने भारत को नज़रंदाज़ कर चीन से खुले आम दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया था और अरबों डॉलर के व्यावसायिक समझौते भी किए थे.
दर्जनों चीनी कम्पनियों ने इस दौरान मालदीव में निवेश शुरू कर दिया जिसमें होटल, रिसॉर्ट्स, बंदरगाह और राजधानी माले को हवाई अड्डे वाले द्वीप से जोड़ने वाले एक बेहद ज़रूरी फ़्लाईओवर का निर्माण भी शामिल था.
भारत को यह रास नहीं आया और सितम्बर, 2018 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसका उद्घाटन किया तो भारतीय दूतावास ने समारोह में हिस्सा नहीं लिया था.
शायद यही वजह थी कि बीते शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी मालदीव के हवाई अड्डे वाले द्वीप पर लैंड करने के बाद समुद्र पर बने इस पुल के बजाय एक स्पीडबोट पर सवार होकर समुद्री रास्ते से माले पहुँचे.
माले में तीस साल से रह रहीं भारतीय मूल की व्यवसायी कंचन जशनानी से मामले पर बात हुई तो उन्होंने कहा, "पिछले सालों में यहाँ बदलाव तो बहुत आया है. कुछ चीज़ें अच्छी हुईं तो कुछ वैसी नहीं कहीं जा सकतीं. लेकिन इस यात्रा के बाद आगे अच्छा होना चाहिए ऐसी अभी उम्मीद तो है."
लेकिन वजह अनेक हैं जिन पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है.
पहली बात ये कि दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के मालदीव को चुनने की असल वजह क्या है.
मोदी ने अपने दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में पिछली बार की तरह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के नहीं बल्कि बिम्सटेक देशों के समूह के नेताओं को बुलाया और मालदीव इसमें नहीं था.
दूसरी बात ये कि पिछले कुछ सालों में मालदीव और श्रीलंका भारतीय विदेश नीति के लिए पाकिस्तान के बाद शायद सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं.
दोनों देशों में एक लंबे समय तक प्रतिद्वंदी चीन की हिमायती सरकारें सत्ता में थीं और भारत को ये बात खटक रही थी.
गोवा विश्विद्यालय में दक्षिण एशिया विभाग के प्रोफ़ेसर राहुल त्रिपाठी के मुताबिक़, "कुछ आलोचक इस बात को भी कहते रहे हैं कि भारत इंतज़ार कर रहा था, किसी भी मौक़े का, इन दोनों देशों में दोबारा पैर जमाने का. श्रीलंका में मौक़ा थोड़ा पहले मिला और मालदीव में थोड़ा बाद में. लेकिन गोल एक था, चीन को पछाड़ना."