Monday, July 30, 2018

城市成为气候行动领导者

绿色和平组织近日发布的一份 报告显示,英国有数以万计的孩子呼吸着污染物超标的空气。就在报告发布当日,一群来自世界各地的市政府官员和金融家在伦敦召开会议,探讨城市在未来减少碳排放和建设可持续基础设施中的作用。

这次会议由C40城市气候领导联盟(由91个城市组成的联盟,旨在应对气候变化)在伦敦市政厅召开,旨在探讨如何在全世界范围内动员巨额私有资本支持低碳基础设施的建设。

目前,该联盟75%的可持续项目(涉及交通、能源和垃圾处理等领域)依靠的是公共部门的资金,也就是说在私有资本的吸纳上存在巨大的短板。

城市人口密集,是温室气体排放的主要来源,但在洪灾、干旱和热浪等气候变化引起的极端天气事件面前又特别脆弱。

因此,市级政府领导人在国际社会应对气候变化的过程中扮演着核心角色。一些市级政府领导人也已经认识到,应对气候变化不能仅依赖国家或国际层面的行动。

特朗普政府主政后
大肆打压气候行动,不仅意图大幅削减美国航空航天局(NASA)气候研究和美国国家环保局的资金,废除《清洁电力计划》,还威胁说要撤回向联合国提供的数十亿美元气候资金。与此同时,欧洲G20国家部长们在距离7月份召开的G20峰会还有3个月的时候,投票将气候融资内容从最新的声明草案中删除。

面对这些威胁,很多城市的应对方法是加倍团结,将未来发展的主动权掌握在自己手中

“气候变化的领导权正在逐渐向下延伸,最明显的是在城市层面。”英国气候变化与工业大臣尼克
·赫德如是说。

他又说:“(在全世界范围内)政治领导方式正在变革,协作越来越重要。城市必须找到比以前更清洁、更完善的新的发展路径。这也给它们带来了巨大压力,须尽快地将创新解决方案市场化。”

面对就英国脱欧后工业战略的各种猜测,赫德声称英国的气候行动“将力度空前”。

世界资源研究所罗斯可持续城市中心总监阿
·达斯古普塔说:“我们与各城市的互动表明,美国的市政府们已经站了出来。在气候政策上,世界各地的市级政府都比国家政府更进步,这将是一个长期趋势。”

争分夺秒

C40城市气候领导联盟和奥雅纳工程顾问公司最近的一份
报告 指出,要将全球温度上升控制在比前工业化水平高2摄氏度之内,在2020年之前低碳基础设施投资必须达到3750亿美元。这似乎是一个不可能实现的目标。

赫德警告说,到2050年全世界三分之二的人口都将住在城市,未来五年围绕基础设施所做的决策将决定各国是否能兑现其在“ 巴黎协定”中所做的承诺。

C40城市气候领导联盟执行主席马·沃茨说,城市层面采取的行动可以完成巴黎协定中2摄氏度目标所需减排量的40%,并且强调了可持续发展投资所带来的经济机遇。

他说:“(C40城市)有3000个项目有待实施,其中700个是建筑项目。我们目前只筹集了15%的资金,这意味着155亿美元的投资机会。”

英国计划在未来4到5年引进4.5万辆电动巴士,这代表着超过100亿英镑的投资机会。而今年晚些时候在考文垂开业的新电池厂,也会给当地提供数百个就业机会。

融资不易

快速城镇化是本的障碍之一,因为这意味着总是没有足够的资金来支持无尽的需求。此外,影响私有资本流入的因素还有
引入私有资政治动荡和对资金流动的规制。

花旗银行企业可持续性主管瓦莱里
·史密斯指出,发展中国家遏制公债规模的债务限额阻碍了这些国家融资渠道的发展。而发达国家的问题则可能是信用评级不足导致的银行贷款额度不够。

解决之道

金融家们呼唤更具“可融资性”的商业模式、放松金融监管和出台更多的财政鼓励措施,如对投资者的减税优惠。市级政府领导人们则呼吁加强各级政府(从街道到国家)间的合作,并就彼此的金融需求进行专业的沟通。

英国建筑承包商Skansaka公司的格雷格
·霍尔强调说,工程负责人和投资者在评估建筑投资的风险和回报时必须放眼长远,同时将员工医保福利和生产力等指标纳入综合考量。

会议上列举了一些利用公共资金成功动员私有资本的例子,包括巴塞罗那利用停车费来为骑行系统融资(由一家私营公司经营),以及麦德林利用空气污染税为骑行系统提供资金。

到2020年,中国城市人口比例将达到60%,投资可持续基础设施成为当务之急。

要实现“
巴黎协定”的目标,城市至关重要。在城镇化和人口增长的压力下,城市是否能携手私有资本成功对现有活动进行去碳化,并且获得可持续的发展,将至关重要。

Sunday, July 8, 2018

नज़रियाः केजरीवाल के सामने ट्रांसफ़र-पोस्टिंग मामले का पेंच

 जुलाई  को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक संवैधानिक पीठ ने तीन स्वतंत्र फ़ैसले सुनाए- जिसमें बिना किसी मतभेद उस अनुच्छेद 239 एए की एक मुकम्मल व्याख्या की गई जिसके अंतर्गत दिल्ली को बतौर केंद्र शासित प्रदेश विशेष दर्जा प्राप्त है.
इस सब की शुरुआत अगस्त  के दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले पर सवाल उठाती नौ रिट याचिकाओं को दाख़िल करने के साथ हुई थी.
उस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं में 239 एए की व्याख्या को लेकर महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं, इसलिए खंडपीठ का कहना था कि पहले संवैधानिक पीठ को संवैधानिक प्रश्नों को संबोधित करना चाहिए और उसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट का उचित बेंच व्यक्तिगत अपील पर फ़ैसला कर सकता है.
संवैधानिक पीठ ने खुद को संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करने तक ही सीमित कर दिया और उसने कहीं भी मतभेद, असहमति या संदेह के ख़ास क्षेत्रों का ज़िक्र नहीं किया.
संवैधानिक खंडपीठ के निर्णयों के आधार पर कोई अनुमान लगाया जाना अभी जल्दबाजी होगी. जिसमें सबसे विवादास्पद मुद्दों में शामिल सेवा क्षेत्र (जिसे अफ़सरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग भी कहा जाता है) और एंटी करप्शन विभाग पर नियंत्रण वापस पाना भी शामिल है.
संवैधानिक पीठ के फ़ैसले के बाद दिल्ली के राजनीतिक शासन को एलजी को सूचित करने के बाद शहर के प्रशासन की बेहतरी के लिए निर्णय लेने और इसे लागू करने का अधिकार मिल गया है, जैसा कि आमधारणा है इसमें अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर के अधिकार का मसला भी स्वतः शामिल हो गया है.
लेकिन यह व्याख्या की ग़लती है. जबतक टीबीआर को संशोधित नहीं किया जाता या व्यक्तिगत मामलों को संवैधानिक फ़ैसलों के आधार पर बेंच तय नहीं करती, निर्वाचित सरकार पोस्टिंग और ट्रांसफर के अधिकार को अपने हाथ में आ चुका नहीं मान सकती.
आम जनता को यह बेतुका दिख सकता है कि एक निर्वाचित सरकार के पास क़ानून बनाने, सालाना बजट की मंजूरी और योजनाओं-परियोजनाओं को शुरू करने की शक्ति कैसे हो सकती है जब वो एलजी की स्वीकृति के बगैर अधिकारियों की पोस्टिंग ही नहीं कर सकती?