Thursday, September 6, 2018

समलैंगिकता अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट

देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार को समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है. इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर सुनवाई की.
धारा 377 को पहली बार कोर्ट में 1994 में चुनौती दी गई थी. 24 साल और कई अपीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने अंतिम फ़ैसला दिया है.

चीफ़ जस्टिस ने क्या कहा?
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि आज का फ़ैसला इस समुदाय को उनका हक देने के लिए एक छोटा सा कदम है. एलजीबीटी समुदाय के निजी जीवन में झांकने का अधिकार किसी को नहीं है.
जस्टिस इंदु मल्होत्रा में कहा कि इस समुदाय के साथ पहले जो भेदभाव हुए हैं उसके लिए किसी को माफ़ नहीं किया जाएगा.

जस्टिस नरीमन ने कहा ये कोई मानसिक बीमारी नहीं है. केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को ठीक से समझाए ताकि एलजीबीटी समुदाय को कलंकित न समझा जाए.

फ़ैसले का स्वागत करते हुए आईआईटी मुंबई के याचिकाकर्ता कृष्णा ने कहा, "आईआईटी में दाखिला मिलने पर भी इतनी खुशी नहीं हुई थी, जितनी आज हो रही है. मैं इतना खुश हूं कि आंखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे. फिलहाल ये नहीं पता कि इस फैसले से मेरे जीवन में क्या फ़र्क पड़ने वाला है, लेकिन इतना जरूर है कि अब बिना किसी डिप्रेशन, बिना किसी डर के हम भी जीवन जी सकेंगे." 

ललित ग्रुप ऑफ होटल के केशव सूरी ने फैसले का स्वागत करते हुए बीबीसी से बात की. उनके मुताबिक लड़ाई अभी बाकी है. आगे अपने अधिकारों की लड़ाई हमे लड़नी होगी. लेकिन इसे अपराध के दायरे से बाहर निकलना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है. सुप्रीम कोर्ट और समुदाय को हमसे माफी मांगने की जरूरत है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए इसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया था.
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया था. आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक, जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान रखा गया था. इसमें जुर्माने का भी प्रावधान था और इसे ग़ैर ज़मानती अपराध की श्रेणी में रखा गया था.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को इसके विरोध में कई याचिकाएं मिलीं. आईआईटी के 20 छात्रों ने नाज़ फाउंडेशन के साथ मिलकर याचिका डाली थी. इसके अलावा अलग-अलग लोगों ने भी समलैंगिक संबंधों को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, जिसमें 'द ललित होटल्स' के केशव सूरी भी शामिल हैं.

सुप्रीम कोर्ट को धारा-377 के ख़िलाफ़ 30 से ज़्यादा याचिकाएँ मिली.
याचिका दायर करने वालों में सबसे पुराना नाम नाज़ फाउंडेशन का है, जिसने 2001 में भी धारा-377 को आपराधिक श्रेणी से हटाए जाने की मांग की थी.

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